गुमला जिले में आदिवासी महिलाओं के लिए मिसाल बन चुकी मंजू उरांव को मुख्यमंत्री Hemant Soren से न मिलने पर हाथ लगी निराशा

गुमला: मंजू उरांव, 12 दिसंबर ठीक 12 बजे गुमला के उस मैदान में पहुंच गई थी, जहां कुछ ही घंटों बाद झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन (Hemant soren) खतियानी जोहार का आगाज करने के लिए आने वाले थे। मंजू के हाथ में एक पेपर भी था, जो वो सीएम हेमंत सोरेन (Hemant soren) को देना चाहती थी। जिसमें उसने साफ – साफ तौर पर अपनी परेशानियों को लिखा दिया था। तभी झारखंड सीएम हेमंत सोरेन का हेलिकॉप्टर मैदान पर उतरता है। मंजू के आंखों की चमक तेज़ हो जाती है। वो सखुआ की टीम को बताती है कि उसे पूरी उम्मीद है कि उसे सीएम से सहायता मिलेगी।

मुख्यमंत्री अपने पूरे काफिले के साथ वहां आते हैं और जोरदार भाषण देते हैं। जिसमें वो जनता से कई वादे करते हैं। जैसे कि विधवाओं और एकल महिलाओं को पेंशन मिलेगी, किसानों को पूरी सहायता दी जाएगी। भाषण खत्म होता है और सीएम चले जाते हैं। मंजू पूरी कोशिश करती है अपनी बात मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant soren) तक पहुंचने की पर सफल नहीं हो पाती। फिर कोई उसे बताता है की मुखमंत्री सीधा गुमला परिसर जायेंगे और वहां लोगों से मिलेंगे।

मंजू परिसर की ओर रवाना होती है। परिसर के अंदर दाखिला भी मिलता है पर कोई भी उसे मुख्यमंत्री से मिलने नहीं देता। वो निराश होकर बाहर आ जाती है। उसकी आंखों में उदासी है पर वो किसी तरह खुद को हौसला देती है।

पर उसके मन में कहीं न कहीं ये डर है की अगर जल्द ही उसे सहायता न मिली तो उसके सर पर परेशानियों का पहाड़ टूट जायेगा।

 

गुमला परिसर के बाहर मुखमंत्री के लिए लिखे पत्र को लेकर खड़ी मंजू उरांव

    गुमला परिसर के बाहर मुखमंत्री hemant soren के लिए लिखे पत्र को लेकर खड़ी मंजू उरांव

 

कौन है मंजू उरांव?

गुमला जिला अंतर्गत सिसई प्रखंड के शिवनाथपुर डहूटोली गांव में रहने वाली 23 वर्षीय मंजू उरांव ने कुछ ही महीनों पहले खेत में ट्रैक्टर चलाकर आदिवासी समाज में फैले अंधविश्वास को तोड़ा था। वास्तव में झारखंड के कई आदिवासी समाज में ये माना जाता है कि अगर महिला हल चलाए तो गांव पर बड़ी आपदा आ सकती है। इसी वजह से गांव ने उसके खिलाफ बहिष्कार और जुर्माने का ऑर्डर निकाल दिया था (जो झारखंड में एक दंडनीय अपराध है)। इसके बावजूद भी मंजू ने साहस नहीं छोड़ा और खेती करना जारी रखा। ये बात प्रभात खबर के एक पत्रकार तक पहुंची और उसने मंजू की स्टोरी को छापा। जिसके बाद सरकार के अधिकारियों की नजर मंजू पर पड़ी और उन्होंने उससे मिलकर सहायता का आश्वासन दिया। और कहा की सरकार द्वारा किसानों को मिलने वाला सोलर पम्प और तकनीकी सहायता उसे मुहैया करवाई जायेगी। उसके जज्बे को देखते हुए राज्य सरकार के कृषि विभाग ने गांव को एक्सीलेंस सेंटर के रूप में विकसित करने की योजना तैयार की। विभाग ने मंजू को इस प्रस्तावित एक्सीलेंस सेंटर का क्लस्टर हेड बनाने का फैसला भी किया था।

सरकार के नुमाइंदों द्वारा दिए गए आश्वाशन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार पर उसे पूरा भरोसा था। इसी लिए जहां वो 5-7 एकड़ में खेती कर रही थी। वहीं उसने अपनी खेती का विस्तार कर के 20 एकड़ कर दिया।

फेम में आने के बाद बैंक ने भी उसके KCC लोन की अपील को स्वीकृत कर दिया था। जिसकी रकम एक लाख थी। उससे उसने खेत की जुताई और बीज खरीद लिए। 3 महीने बीत गए पर सरकार द्वारा मिलने वाली सहयता का कोई नामोनिशान न था।

    अपने खेतों में काम करती मंजू उरांव

क्या है मंजू की परेशानी की वजह।

खेत में ट्रैक्टर चलाकर हजारों आदिवासी महिलाओं के लिए मिसाल बनी मंजू के सपने बहुत बड़े हैं। वो बताती है कि उसके गांव में मजदूरों के पलायन की बहुत बड़ी समस्या है। जिसे वो दूर करना चाहती है। वो चाहती है की खुद भी खेती करे और दूसरे लोगों को भी रोजगार मुहैया करवाए। साथ ही वो गांव की बाकी महिलाओं को नई तकनीक वाली खेती की प्रक्रिया सीखना चाहती है। ताकि गांव की सभी महिलाएं आत्मनिर्भर बने और उसका गांव एक मॉडल गांव के रूप में स्थापित हो।

मंजू sakhua की टीम को बताती है कि उसे डर है कि अगर सरकारी सहायता उसे समय से न मिली तो इस बार की फसल भी उसकी खराब हो जायेगी। साथ ही, बैंक से लिया लोन भी चुकाना उसके लिए असंभव हो जाएगा। अपने गांव को मॉडल गांव बनाने का सपना भी उसका टूट जायेगा। वो बस मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन Hemant soren से मिलकर एक ही रिक्वेस्ट करना चाहती है कि किसी भी तरह उसके खेतों में सोलर पंप लगा दिया जाए, ताकि वो सिंचाई का काम जारी रख सके। साथ ही उसे बाकी किसानों को मिलने वाली सुविधा प्राप्त हो। ताकि किसी भी कारणों से उसे खेती छोड़नी न पड़े।

 

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